DNS क्या है? काम कैसे करता है, इसके प्रकार, फायदे, नुकसान बताइए?

नमस्कार दोस्तों आज हम एक ऐसे स्पेशल सब्जेक्ट पर बात करने वाले हैं जो आपके लिए बहुत ही उपयोगी हो सकता है जिसे DNS कहते हैं। अब इसको देखकर आपके मन में एक प्रश्न जरूर आया होगा कि इसके फायदे क्या है किस काम आता है तो चलिए दोस्तों हम जल्द ही बिना समय गवाएं आसान सा आसान शब्दों में DNS से संबंधित सभी जानकारियां डिटेल में जानते हैं।

 

DNS क्या है?

DNS इसका फुल फॉर्म “Domain Name System” होता है। यह एक इंटरनेट प्रोटोकॉल या यू कहे की नेटवर्क सर्विस के वैसा ही है। यहां DNS इंटरनेट के जरिए डोमेन नेम को उनके IP पते (IP Address) से कनेक्ट करता है। यानी किसी भी वेबसाइट की Identification (पहचान) करने में इसकी हेल्प ली जाती है।
सरल शब्दों में जाने तो – Domain Name System यहां सर्विस इसलिए प्रयोग करने योग्य है क्योंकि इसके द्वारा कोई भी इंटरनेट यूजर Domain Name उदाहरणार्थ (जैसे – gyanraaj.com) को बड़ी सरलता से याद रखा जा सकता है परन्तु दूसरी तरफ हम देखे तो इंटरनेट केवल IP एड्रेस कि भाषा जानता है मतलब इंटरनेट एकमात्र IP एड्रेस बेस से ही चलता है। अब मन में एक सवाल आता है कि website visitors को IP एड्रेस की जरूरत पड़ती है तो इसका उत्तर है बिल्कुल भी नहीं। IP एड्रेस से भी किसी भी वेबसाइट पर विजिट किया जा सकता है। उदाहरणार्थ – 216.58.204.132  यहां आईपी ऐड्रेस google.com का हैं इसको आप अपने ब्राउज़र में सर्च करते हैं तो आउटपुट में आपको Google का होम पेज ही दिखाई देगा।
सीधी सी बात है हमें अगर किसी भी वेबसाइट पर विजिट करना है तो हम बिना किसी IP एड्रेस के अपने ब्राउज़र से कोई सी भी वेबसाइट का नाम fill करके उस वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं। पिछले टाइम में जाए तो तब Web Address नही होते थे। तब ओनली आईपी एड्रेस को यूज किया जाता था। अब आईपी एड्रेस पर ध्यान न देते हुए DNS को अपनाकर सभी कामों को ओर सरल बना दिया है।

DNS क्या है? काम कैसे करता है, इसके प्रकार, फायदे, नुकसान बताइए?

DNS कैसे काम करता है? संक्षिप्त में समझाइए

दोस्तों आपकी एक बात क्लियर कर दे कि जितने भी डिवाइस जो इंटरनेट से कनेक्ट है जैसे की – website, mobile phone, tablet, laptop, Google home, refrigerator etc. इन सभी का एक यूनिक स्ट्रिंग संख्याओं का आईपी एड्रेस होता है। चलिए अब जानते हैं कि DNS किस तरह से काम करता है।

• सर्वप्रथम जब भी कोई यूजर ब्राउज़र पर वेबसाइट के नाम (जैसे – gyanraaj.com) को दर्ज करता है तो सिस्टम तुरंत ही आसपास के DNS सर्वर से कम्युनिकेट करता है और वेबसाइट के सही IP एड्रेस को ज्ञात करता है।

• यहां पर DNS सर्वर, वेबसाइट के नाम (जैसे – gyanraaj.com) को असली IP एड्रेस में चेंज करता है। चेंज करने के बाद टोटल इनफार्मेशन फिर से सिस्टम को भेज देता है।

• जब भी सिस्टम को वेबसाइट का वह असली IP एड्रेस मिलता है तो ब्राउज़र उस IP एड्रेस को डायरेक्ट ही वेबसाइट के सर्वर से कनेक्ट करता है और फिर उस वेबसाइट को किसी भी सिस्टम जैसे- mobile phone, computer etc. की स्क्रीन पर डिस्प्ले करता है।

• एक उदाहरण से समझे तो जैसे – google.com को आपने कंप्यूटर में ब्राउज़र पर टाइप किया तो आपका कंप्यूटर DNS से यहां मालूम करता है कि google.com का IP एड्रेस क्या है। इसके बाद DNS छानबीन करता है और ओरिजिनल IP एड्रेस को ढूंढता है। ढूंढने के बाद पुनः आपके कंप्यूटर को ओरिजिनल IP एड्रेस दे देता है। अब कंप्यूटर इस IP एड्रेस में जाकर वेबसाइट की इनफार्मेशन को डाउनलोड करके तथा वेबसाइट को स्क्रीन पर डिस्प्ले करता है।

 

DNS के प्रकार क्या है?

DNS के कुछ विशेष प्रकार निम्न दिए गए है तो चलिए दोस्तों जानते है –

1) DNS Resolver :- इसको एक स्पेशल कंप्यूटर या नेटवर्क डिवाइस कह सकते हैं क्योंकि यहां कंप्यूटर में वेबसाइट के नाम को सर्वरों पर चेक करता है और जो वास्तविक आईपी एड्रेस होता है उसकी डिलीवरी करता है।

2) Root Name Server :- Root Name Server जो DNS में up level में होता है तथा बाकी जो DNS सर्वर होते है उनको असिस्टेंट के तौर पर काम में आता है। यानी इस सर्वर को बाकी सभी DNS सर्वरो कि जानकारियां मालूम रहती है इसी के पास सभी की लिस्ट रहती है। इसको करीब 13 Root नोड्स के एक नेटवर्क के सहारे से ऑपरेट किया जाता है।

3) TLD Servers :- TLD का पूरा नाम Top-Level Domain है। यह सर्वर टॉप लेवल डोमेनों की इनफॉरमेशन बताते हैं। टॉप लेवल डोमेन जैसे- .com, .org, .net आदि।

4) SLD Servers :- SLD का पूरा नाम Second Level Domain होता है। यह सर्वर सेकंड लेवल में पाए जाते हैं। जो सेकंड लेवल में डोमेन नाम आते हैं उनकी इंफॉर्मेशन को यह बताते हैं।

5) Authoritative Nameserver :- Authoritative Nameserver इनका वर्क जो फिक्स डोमेन होते हैं उनके आईपी एड्रेस को प्रोवाइड करना है। साथ में उन डोमेन की DNS इंफॉर्मेशन को लोकल DNS सर्वर्स तक पहुंचना है।

 

Domain Name एवं IP Address के बीच क्या अंतर है?

Domain Name एवं IP Address के बीच कुछ प्रमुख अंतर निम्न दिए गए है –

1. Domain Name कि संरचना एक वर्ड या सेंटेंस जैसी होती है उदाहरणार्थ- gyanraaj.com जबकि IP Address   की संरचना एक नंबर जैसी होती है। उदाहरणार्थ- 192.168.1.1

2. Domain Name कि हेल्प से इंटरनेट में किसी एक वेबसाइट को आईडेंटिफाई किया जा सकता है लेकिन IP Address से इंटरनेट में किसी डिवाइस के नेटवर्क को आईडेंटिफाई किया जा सकता है।

3. Domain Name को याद रखना बड़ा सरल है लेकिन IP Address को याद रखना हर एक व्यक्ति के लिए मुश्किल भरा हो सकता है।

 

DNS के फायदे बताइए?

DNS के कुछ फायदे इस प्रकार है –

• DNS के फायदे में सबसे पहला फायदा यहां है कि यहां नेटवर्किंग को आसान बनाता है।

• DNS सर्वर्स मुख्यतः वेबसाइट को फिल्टर कर पाने में सक्षम होते हैं। जिससे होता क्या है कि फालतू की चीजों से बचा जा सकता है।

• DNS सर्वर्स से वेबसाइट पर आईपी एड्रेस को एक स्पीड में प्राप्त किया जा सकता है। जिससे वेब पेज को ओपन करने में भी समय बचता है।

 

DNS से कौन-कौन से नुकसान है?

DNS के कुछ नुकसान के बारे में निम्न जानकारियां दी गई है –

• DNS जो Distributed Attacks जैसी डेंजरस प्रॉब्लम को न्योता दे सकते हैं।

• DNS द्वारा यूजर की इंटरनेट एक्टिविटीज को ट्रैक किया जा सकता है। जिससे ऑनलाइन एक्टिविटी की प्राइवेसी पर इफेक्टिव फोर्स पड़ता है।

• DNS Spoofing यहां भी एक fearful वाली प्रॉब्लम हो सकती है क्योंकि इसके द्वारा गलत जानकारियां प्रदान करने की कोशिश हो सकती है।

DNS से जो भी नुकसान होते हैं अगर उनसे बचना है तो हमें सिर्फ एक ही काम करना है कि Secure DNS settings, firewall व security software का प्रयोग आज से ही कर देना है।

 

सारांश –

आशा करता हूं कि दोस्तों आपको DNS क्या है? कैसे काम करता है तथा इससे संबंधित सभी जानकारियां पसंद जरूर आई होगी। मैंने अपनी तरफ से सभी जानकारियां आसान से आसान शब्दों में समझाने कि पूरी कोशिश करी है अगर फिर भी आपको कहीं ना कहीं इस विषय से लेकर कोई डाउट हो तो आप तुरंत कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं। साथ में दोस्तों इस आर्टिकल को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।
“Thanks To All “

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